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उसी लम्हे की ख़ातिर

एहसास, अनुभूति और चिन्तन के रचनात्मक सफ़र में जो सोचा, जितने खट्टे-मीठे, प्रिय – अप्रिय प्रसंग, तल्ख़ और अज़ीज़ तजुर्बात मिले, उन्हीं की शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्ति का संकलन उसी लम्हे की ख़ातिर इस विश्वास के साथ हाज़िर है कि आपका प्यार, प्रेरणा ही मेरा प्रेय और श्रेय है।
ज़िन्दगी समझने, परखने की ख़ातिर क़ुदरत, सामाजिक विषमतायें, रिश्तों में हो रहे बदलाव-दूरियाँ और हालात की मजबूरी को खुले दिल-ओ- दिमाग से देखने, महसूस करने की ज़रूरत है। उसे अनुभव और अहसास की कसौटी पर परखना भी मानवीय संवेगों की बुनियाद है। चिन्तन-मनन की निरंतरता के दौरान हर्ष-शोक, संवेदनाओं और संवेगों के लम्हात में उभरते जज़्बात और अनुभूतियों का शब्द-चित्रांकन है, उसी लम्हे की ख़ातिर।
रचनात्मकता के इस सफ़र में उम्मीद एक ज़िंदा शब्द है, इसी दुआ के साथ हाज़िर है — उसी लम्हे की ख़ातिर।
अगर ख़ूबसूरती है, तो, देखना वाजिब है
गुनाह तो फ़क़त, अंदाज़-ए-निगाह का है
गुनाह तो फ़क़त, अंदाज़-ए-निगाह का है