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उसी लम्हे की ख़ातिर

प्रथम पुस्तक आईना के सुरुचि संपन्न पाठकों का प्यार, उनकी हौसलाअफ़ज़ाई से अपने कलाम का अगला मक़ाम उसी लम्हे की ख़ातिर मूर्त रूप में प्रस्तुत है।
 
फ़िक्र, चिन्तन, एहसास और अनुभूति के इस रचनात्मक सफ़र में महज़ दिल ही नहीं, दिमाग़ और होश के जज़्बात का मुक्त आकाश भी मौजूद है। बस यह विनम्र कोशिश रही कि पाँव तले ज़मीन न छूटे।
 
ज़िन्दगी में आस्था, व्यवहार में बेलौस ईमानदारी, ज्ञानात्मक संवेदना ही इन अश्आर और ग़ज़ल की निजी सम्पदा, विरासत है, जिसे संग्रह उसी लम्हे की ख़ातिर के रूप में अपने पाठक और श्रोता को प्रस्तुत करते हुए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ और किंचित संकोच महसूस कर रहा हूँ।
 
उसी लम्हे की ख़ातिर की ज़बान-शैली, अपनी भाषाई जन्म भूमि और रचनात्मक जीवन अनुभव की कर्मभूमि से प्रसूत है। बस मुतवातिर कोशिश रही है कि अनुभूति के संदर्भ में गंगा-जमुनी तहज़ीब की सांस्कृतिक बयार भी अपने रूप रंग, रस, स्पर्श और गंध के साथ बरक़रार रहे।

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दैरो  हरम  में  रहता  है या  कहीं और,  नहीं  पता
इबादत,आह और दुआ को मालूम है, उसका पता

दैरो हरम - मंदिर, मस्जिद

-स्वदेश

स्वदेश जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद मैनपुरी के गाँव में, एक शिक्षित, कृषक परिवार में हुआ है। ग्रामीण परिवेश में ही परवरिश हुई। मेधावी छात्र होने की वजह से जूनियर हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद से ही, छात्रवृति मिलती रही।

कविता और ग़ज़ल की पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखने वाले छात्र स्वदेश को, जब स्नातक शिक्षा हेतु, गाँव से शहर जाना पड़ा, तो सबसे पहली कविता याद सताती है की रचना की।

स्नातक होते ही भारतीय रिज़र्व बैंक में जॉब प्राप्त हो गई। रिज़र्व बैंक में कार्यरत होने के बावजूद, अध्ययन कार्य जारी रखा। डी ए वी लॉ कालेज, कानपुर से सायंकालीन छात्र रहकर, विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

भारतीय रिज़र्व बैंक में छत्तीस वर्ष की सेवा के बाद, खूबसूरत शहर देहरादून में आवास बनाया, जिसकी ख़ास वजह रही, प्रकृति के प्रति सहज आकर्षण।

बचपन से ही ग़रीबी, अशिक्षा, असमानता, सामाजिक कुरीतियों जैसी विभिन्न समस्याओं को खुली आँखों से देखने, समझने की वजह से, अक्सर हर किसी की दिक़्क़त में मदद करने का स्वभाव, उन्हें दूसरों से अलग दर्शाता रहा है।

स्वदेश जी के दिलो दिमाग़ में बाल्यावस्था से पनप रही सोच, जज़्बात, संवेदना, प्रिय-अप्रिय अनुभव, राय और अनुभूति अश्आर और ग़ज़ल की शक़्ल लेने लगे। रचनाओं को मूर्त रूप में प्रस्तुत करने की ख़ातिर, प्रथम पुस्तक काव्य संग्रह आईना चंद वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई।

रचनात्मकता के इस खूबसूरत सफ़र में आईना के सुरुचिपूर्ण पाठक और रसिक श्रोताओं से मिले प्यार और हौसला अफ़ज़ाई से पेश है द्वितीय काव्य संकलन उसी लम्हे की ख़ातिर

उसी लम्हे की ख़ातिर

चिन्तन, एहसास और अनुभूति के रचनात्मक सफ़र में जो सोचा, जितने खट्टे- मीठे, प्रिय-अप्रिय प्रसंग, तल्ख़ और अज़ीज़ तजुर्बात मिले, उन्हीं की शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्ति का संकलन है उसी लम्हे की खातिर

ज़िन्दगी में आस्था, व्यवहार में बेलौस ईमानदारी और ज्ञानात्मक संवेदना ही इन अश्आर और ग़ज़लों की निजी संपदा, विरासत है। चिन्तन-मनन, खुशी- ग़म, उद्गार अथवा कथन में सजग प्रयत्न रहा है कि यथार्थ का दामन न छूटे और पाँव ज़मीन पर बने रहें।

आईना

सामाजिक उथल-पुथल, रिश्तों में क्षरण, अशिक्षा, राजनैतिक उतार-चढ़ाव, जीवन के विभिन्न रंग-ढंग और सुख-दुख के संदर्भ में हासिल खट्टे-मीठे अनुभव और अनुभूतियों की श्रृंखला के तहत हालात, बेचैनी और बेबसी के बिखरे काँच के टुकड़ों को जोड़कर सुधी पाठक और काव्य साहित्य के शौकीन श्रोताओं के समक्ष एक दर्पण पेश करने की कोशिश है- काव्य संग्रह आईना

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